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Showing posts from December, 2020

उष्ण मानसूनी जलवायु प्रदेश Tropical monsoon climate

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3. उष्ण मानसूनी जलवायु प्रदेश  स्थिति एवं विस्तार —मानसूनी प्रदेशों की स्थिति दोनों गोलार्डों में 8° से 30° अक्षांशों के मध्य पायी जाती है। ये प्रदेश भूमध्य रेखा से उत्तर एवं दक्षिण में महाद्वीपों के पूर्वी एवं मध्यवर्ती भागों में स्थित हैं। इन प्रदेशों का विस्तार एशिया महाद्वीप के फिलीपाइन द्वीप समूह, भारत, पाकिस्तान, बांगलादेश, बर्मा, थाईलैण्ड, कम्बोडिया, लाओस, वियतनाम तथा दक्षिणी चीन, अफ्रीका के पूर्वी तटीय भाग की ओर मालागासी तथा मोजाम्बिक में, आस्ट्रेलिया महाद्वीप के उत्तरी-पूर्वी भाग में, लेटिन अमेरिका के केरेबियन तट व मध्य अमेरिका, मैक्सिको तथा ब्राजीज के पूर्वी तटीय भाग तक है। जलवायु-मानसूनी जलवायु प्रदेशों में जलवायु उष्ण एवं आर्द्र होती है। इन प्रदेशों में वार्षिक तापान्तर अधिक मिलता है। उत्तरी गोलार्द्ध में ग्रीष्म ऋतु अप्रैल से सितम्बर मास तक रहती है। इस ऋतु में अत्यधिक गर्मी पड़ती है, जबकि औसत तापमान 30°C से 38°C रहता है। भारत के उत्तरी-पश्चिमी भाग में तापमान 49°C तक एवं मध्य मैक्सिको में 40°C मिलता है। उत्तरी भारत में मई-जून में लू (गर्म लहर) चलती है। ग्री...

सूडान तुल्य या सवन्ना तुल्य जलवायु प्रदेश Climate zone like Sudan or Savanna

2. सूडान तुल्य या सवन्ना तुल्य जलवायु प्रदेश   स्थिति एवं विस्तार -सूडान या सवन्ना तुल्य प्रदेश 5 से 22° उत्तरी-दक्षिणी अक्षांशों के मध्य स्थित हैं। इन प्रदेशों का विस्तार अफ्रीका महाद्वीप के सूडान, पूर्वी अफ्रीका का पठार तथा जेम्बेजी बेसिन में, दक्षिणी अमरीका महाद्वीप के गयाना पठार, ब्राजील के पठार तथा उत्तरी आस्ट्रेलिया में है। जलवायु -सूडान तुल्य प्रदेशों की जलवायु वर्ष भर गरम एवं साधारण आर्द्र होती है। यहां ग्रीष्म ऋतु में औसत तापमान 28° से 33°C रहता है। शीत ऋतु में औसत तापमान 18° से 23°C रहता है। वार्षिक तापान्तर केवल 5° से 10°C रहता है। वर्षा ग्रीष्म ऋतु में होती है। वर्षा का वार्षिक औसत 50 से 160 सेमी है। भूमध्य रेखा के निकटवर्ती भागों में अधिक वर्षा होती है। सुदूर भागों में वर्षा का औसत 50 सेमी ही रह जाता है। वार्षिक वर्षा की मात्रा में पर्याप्त विषमता पायी जाती है, कभी बाढ़ तो कभी सूखे की स्थिति आ जाती है। तापमान में भिन्नता की दृष्टि से यहां तीन मौसम अनुभव किये जाते हैं-(i) शुष्क शीत काल (ii) उष्ण शुष्क मौसम (iii) उष्ण तर मौसम। ये प्रदेश निम्न तथा उच्च वायुदाब से प्रभावित...

भूमध्यरेखीय जलवायु प्रदेश. Equatorial Climate Region

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1. भूमध्यरेखीय जलवायु प्रदेश   स्थिति एवं विस्तार -भूमध्य रेखा के उत्तर तथा दक्षिण में 5° से 10° अक्षांश तक विस्तृत जलवायु प्रदेश को विषुवत रेखीय या भूमध्यरेखीय जलवायु प्रदेश कहते हैं। इसका विस्तार कभी-कभी 15° से 20° अक्षांश तक भी पाया जाता है। वायुदाब पेटियों में खिसकाव के कारण इसका प्रसार या संकुचन होता रहता है। इसका विस्तार दक्षिणी अमेरिका के उत्तर, अफ्रीका के मध्य में तथा दक्षिणी-पूर्वी एशिया महाद्वीप में है। दक्षिणी अमेरिका में अमेजन बेसिन, इक्वेडोर तथा उत्तरी-पश्चिमी तट, अफ्रीका में कांगो बेसिन, गिनी तट तथा पूर्वी तट, एशिया में पूर्वी द्वीप-समूह, मलाया प्रायद्वीप व फिलिपाइन्स तथा पूर्वी मध्य अमेरिका में पनामा, कोस्टारिका, निकारागुआ, होण्डुरास, ग्वाटेमाला आदि इसी जलवायु प्रदेश में सम्मिलित हैं।   जलवायु  ,-भूमध्यरेखीय प्रदेशों में वर्ष भर जलवायु समान अर्थात् उष्ण व तर रहती है। सूर्य लगभग वर्षभर लम्बवत चमकता है तथा वर्षपर्यन्त रात व दिन की अवधि में भी बहुत कम अंतर रहता है। इन प्रदेशों में वर्ष भर ऊंचे तापमान रहते हैं। औसत तापमान 27° एवं वार्षिक तापान्तर के...

विश्व के वृहद् जलवायु प्रकार या प्रदेश(MAJOR CLIMATIC TYPES OR REGIONS)

विश्व के वृहद् जलवायु प्रकार या प्रदेश (MAJOR CLIMATIC TYPES OR REGIONS) जलवायु के प्रमुख तत्वों तथा कोपेन एवं थॉर्नवेट द्वारा प्रस्तुत जलवायु के वर्गीकरण के आधारभूत कारकों एवं प्रभावकारी तथ्यों को ध्यान में रखकर यहां विश्व की जलवायु का सामान्य वर्गीकरण किया गया है 1. भूमध्यरेखीय या विषुवत्रेखीय जलवायु, 2. सूडान तुल्य जलवायु, 3. उष्ण मानसूनी जलवायु 4. उष्ण मरुस्थलीय या सहारा तुल्य जलवायु, 5. भूमध्यसागरीय जलवायु, 6. आर्द्र उपोष्ण अथवा चीन तुल्य जलवायु, 7. ईरान तुल्य शुष्क जलवायु, 8. तूरान तुल्य या शीतोष्ण मरुस्थलीय जलवायु, 9. स्टेपी जलवायु, 10. पश्चिमी यूरोपीय तुल्य जलवायु, 11. सेण्ट लारेन्स तुल्य जलवायु, 12. टैगा तुल्य जलवायु 13. टुण्डा तुल्य जलवायु। .......... English translation....... World's major climate types or regions  (MAJOR CLIMATIC TYPES OR REGIONS) Here is a general classification of the world's climate keeping in mind the key elements of climate and the basic factors and influential facts of climate classification presented by Köppen and Thornwet.  1. equatorial o...

Thornweight's World Climate Classification (THORNTHWAITE'S CLASSIFICATION OF WORLD CLIMATES) In English

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Thornweight's World Climate Classification (THORNTHWAITE'S CLASSIFICATION OF WORLD CLIMATES)  The famous American weatherman Thornwet has described climate classification by classifying it into two distinct parts. The first classification was presented in 1931 and 1933 and the second in 1948. Thornweight later revised its classification in 1955. The two classifications often look alike, but if we look closely, there is a difference between the two. In the classification made in 1933, only plants were considered as a special instrument of meteorology, with the help of which the elements of weather can be known. In the second classification in 1948, plants are considered as only natural means that keep the surface water from evaporating into the atmosphere.  Thornweight has considered the effectiveness of precipitation, thermal efficiency and seasonal distribution of rainfall in the global climate classification. He recognized 23 classes by combining these three elements. ...

थॉर्नवेट का विश्व जलवायु वर्गीकरण (THORNTHWAITE'S CLASSIFICATION OF WORLD CLIMATES)

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थॉर्नवेट का विश्व जलवायु वर्गीकरण (THORNTHWAITE'S CLASSIFICATION OF WORLD CLIMATES )  प्रसिद्ध अमेरिकी ऋतु विज्ञानवेत्ता थॉर्नवेट ने जलवायु वर्गीकरण को दो विशिष्ट भागों में वर्गीकृत करके वर्णन किया है। प्रथम वर्गीकरण 1931 और 1933 में प्रस्तुत किया तथा दूसरा 1948 में प्रस्तुत किया। थॉर्नवेट ने आगे चलकर 1955 में अपने वर्गीकरण को संशोधित भी किया। दोनों वर्गीकरण प्रायः एक जैसे मालूम पड़ते हैं, लेकिन सूक्ष्मता से देखा जाए तो इन दोनों में अन्तर है। 1933 में किए गए वर्गीकरण में केवल पौधों को ही मौसम विज्ञान का एक विशेष यन्त्र माना, जिसकी सहायता से मौसम के तत्वों की जानकारी की जा सकती है। 1948 में द्वितीय वर्गीकरण में पौधों को केवल प्राकृतिक साधन (Natural Means) के रूप में माना है जो कि धरातलीय जल को वाष्पीकरण की क्रिया द्वारा वायुमण्डल में पहुंचाते रहते हैं। थॉर्नवेट ने विश्व जलवायु वर्गीकरण में वर्षण की प्रभाविता, तापीय दक्षता व वर्षा के मौसमी वितरण को ही मुख्य माना है। उसने इन तीन तत्वों के संयोग से 23 वर्गों को मान्यता दी। यदि इनका सम्पूर्णतः विस्तृत उप-विभाजन किया जाए तो 120 वर्ग तैया...

Köppen's Climate Classification (KOPPEN'S CLASSIFICATION OF WORLD CLIMATES)

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Köppen's Climate Classification  (KOPPEN'S  CLASSIFICATION OF WORLD CLIMATES )  Germany's famous climatologist Dr. Bludimir Köppen first presented the classification of the world's climate in 1918 and later in 1931. The last revised form of their classification was published in 1936, which is still very important today. In this classification, Köppen considered the influence on vegetation and the bio-world to be particularly important. For this reason, it is also called Empirical classification of natural vegetation. Köppen said that for the development of plants, the effectiveness of rainfall, the amount of rainfall and the smooth attainment of temperature are absolutely necessary. He used botanicals presented by Candol in 1874 in his climate classification. Candol divided the world into 5 divisions - megathermal, xerophyte, mesothermal, microthermal and hechistothermal.  Köppen divided the climate into the first 6 parts, which were represented by capital lett...

कोपेन का जलवायु वर्गीकरण (KOPPEN'SCLASSIFICATION OF WORLD CLIMATES)

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कोपेन का जलवायु वर्गीकरण  (KOPPEN'S CLASSIFICATION OF WORLD CLIMATES)  जर्मनी के प्रसिद्ध जलवायु विज्ञानवेत्ता डॉ. ब्लाडिमिर कोपेन ने सर्वप्रथम 1918 में एवं बाद में 1931 में विश्व की जलवायु का वर्गीकरण प्रस्तुत किया। 1936 में इनके वर्गीकरण का अन्तिम संशोधित रूप प्रकाशित हुआ, जिसका आज भी काफी महत्व है। इस वर्गीकरण में कोपेन ने वनस्पति व जैव-जगत पर प्रभाव को विशेष महत्वपूर्ण माना। इसी कारण इसे प्राकृतिक वनस्पति का आनुभाविक वर्गीकरण (Empirical classification) भी कहा जाता है। कोपेन ने बताया कि पौधों के विकास के लिए वर्षा की प्रभावशीलता, वर्षा की मात्रा तथा तापमान का सुचारु रूप से प्राप्त होना परम आवश्यक है। उसने कैन्डोल द्वारा 1874 में प्रस्तुत वनस्पति मण्डलों का अपने जलवायु वर्गीकरण में उपयोग किया। कैन्डोल ने विश्व को 5 मण्डलों में बांटा था-मेगाथर्मल, जीरोफाइट, मेसोथर्मल, माइक्रोथर्मल व हेकिस्टोथर्मल। कोपेन ने जलवायु को पहले 6 भागों में बांटा, जिन्हें अंग्रेजी के बड़े अक्षरों (Capital letters) A, B, C, D, E और H द्वारा प्रदर्शित किया। A-उष्ण कटिबन्धीय या भूमध्यरेखीय आ...

जलवायु का वर्गीकरण Climate Classificatio

जलवायु का वर्गीकरण  जलवायु के विभिन्न आंकड़ों का संग्रह करके क्रमबद्ध रूप से गठित करना, उनकी व्याख्या करना तथा प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर उनके क्षेत्रीय विन्यास या वितरण को स्पष्ट करना ही जलवायु वर्गीकरण कहलाता है। कोई भी जलवायु वर्गीकरण अपने आप में पूर्ण नहीं हो सकता है, इसलिए सामान्यीकृत वर्गीकरण किए जाते हैं। मोंकहाउस ने कहा भी है कि “जलवायु का प्रादेशिक वर्गीकरण वास्तव में सुविधा का वर्गीकरण है।” जलवायु प्रदेश एक ऐसा भू-भाग होता है जिसमें जलवायु के विभिन्न तत्वों की समांगता या समरूपता पायी जाती है। यद्यपि स्थान व समय परिवर्तन से ही जलवायु तत्वों में अन्तर आ जाता है किन्तु यहां समरूपता से अभिप्राय मोटे तौर पर समानता से है। जलवायु के अलग-अलग तत्वों को आधार मानकर भी जलवायु का वर्गीकरण किया गया है, जैसे तापमान, वर्षा, जल-स्थल वितरण, पवनें आदि। तापमान के आधार पर तापमान जलवायु तत्वों का नियन्त्रक है अतः यह जलवायु के वर्गीकरण का प्रमुख आधार रहा है। ताप के आधार पर भूपृष्ठ को मुख्यतः तीन कटिबन्धों में बांटा गया है : (i) उष्ण कटिबन्ध ( Tarrid zone)—यह कर्क रेखा से मकर रेखा के मध्य विस...

मौसम एवं जलवायु। Weather and climate

मौसम एवं जलवायु  किसी स्थान के वायुदाब, ताप, आर्द्रता, मेघ, वर्षा, पवन प्रवाह आदि तत्वों को जलवायु तथा मौसम के तत्व कहते हैं। मौसम तथा जलवायु में अन्तर है। वे वायुमण्डलीय दशाएं जो एक निश्चित लघु अवधि में किसी क्षेत्र विशेष में पायी जाती हैं, उन्हें मौसम (Weather) कहते हैं। अर्थात् मौसम किसी स्थान विशेष की अल्पकालीन दशाओं का योग होता है। मौसम सदैव बदलता रहता है। अन्य शब्दों में कहें तो मौसम वायुमण्डल को क्षणिक अवस्था है, जबकि जलवायु किसी स्थान विशेष के मौसम की औसत दशा को कहते हैं। जलवायु में एक विस्तृत क्षेत्र में दीर्घ काल की वायुमण्डलीय अवस्थाओं का विवरण होता है। इस प्रकार मौसम की । तुलना में जलवायु शब्द का अर्थ बहुत व्यापक है। मोंकहाउस के शब्दों में, “जलवायु वस्तुतः किसी स्थान विशेष की दीर्घकालीन मौसमी दशाओं के विवरण को सम्मिलित करती है।" विश्व के विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न जलवायु दशाएं पायी जाती हैं। इसका प्रमुख कारण जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक हैं, जिनमें अंक्षाशीय स्थिति, समुद्रतट से दूरी, पर्वतों का अवरोध व दिशा, समुद्री धारायें, पवनों की दिशा, समुद्र तल से ऊंचाई, व...

प्रतिचक्रवात (ANTICYCLONES)

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प्रतिचक्रवात  (ANTICYCLONES) प्रतिचक्रवात में चक्रवात की ठीक उल्टी स्थिति पाई जाती है। इनके मध्य में उच्चदाब होता है एवं थोड़ी-थोड़ी दूरी पर तीन या चार समभार रेखाएं अण्डाकार या V के आकार में एक क्षेत्र को घेरे रहती हैं। इस प्रकार 'प्रतिचक्रवात समभार रेखाओं की वह अण्डाकार व्यवस्था है जिसके मध्य उच्च वायुदाब रहता है एवं पवनें बाहर की ओर चलती हैं। इसमें पवनें शीतल व धीमी गति से चलती हैं, आकाश स्वच्छ रहता है। शीतोष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में दो चक्रवातों के मध्य प्रतिचक्रवातीय दशा पाई जाती है। यहां की पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में दक्षिणावर्त (Clock-wise) एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुई की उल्टी दिशा या वामावर्त (Anticlockwise) दिशा में चलती हैं। इनकी विशेषताएं निम्न हैं : (i) इनके मार्ग या दिशा चक्रवातों की भांति पूर्व-निश्चित नहीं होते हैं। प्रायः शीतोष्ण चक्रवात के पश्चात् प्रतिचक्रवात आते हैं। (ii) यह उष्णकटिबन्ध में भूमि से सागर की ओर चलते हैं एवं तट के निकट समाप्त होते जाते हैं। (ii) इनका ऊर्ध्वाधर विकास छिछला होता है किन्तु क्षैतिज विस्तार बहुत अधिक होता है। कभी-कभी...

तूफानों का नामकरण Storm naming

तूफानों का नामकरण  विश्व के विभिन्न भागों में प्रतिवर्ष प्रचण्ड तबाही फैलाने वाले तूफानों का नामकरण विश्व मौसम संगठन (W. M. O.) करता है। यह संस्थान 1953 से ही तूफानों के नामों की सूची तैयार करता रहा है। इसने विश्व के समुद्री तूफानों को तीन वर्गों में बांटा है—(i) उत्तरी प्रशान्त महासागर के टाइफून (ii) अटलाण्टिक महासागर के हरिकेन तथा (iii) शेष विश्व के साइक्लोन कहलाते हैं। प्रतिवर्ष अंग्रेजी वर्णमाला के A से 8 तक 21 नाम रखे जाते हैं। तूफान जिस क्रम में आता है, उसी क्रम का उसका नाम होता है। उदाहरण के लिये, अटलाण्टिक के पहले तूफान का नाम एरलिन है, तो आखिरी का नाम विल्मा होगा। समुद्री तूफानों के नामों के छः सेट बनाये हुय हैं, अर्थात् छः वर्ष बाद नामों का वही सेट दुबारा प्रयोग होता है। अत्यधिक विनाशकारी तूफान आने पर उसके नाम को दुबारा काम में नहीं लेते हैं, जैसे विगत वर्षों में आया 'कैटरीना'। पहले 1980 तक तूफानों का नाम केवल महिलाओं के नाम पर रखा जाता था, जैसे—रीटा, सिंडी, हार्वी, लैला, एमिली आदि, किन्तु बाद में इस सूची में पुरुषों के नाम भी जोड़ दिये गये, जैसे-ऑस्कर गार्डन, बिल आदि...

टॉरनेडो TARNADO

टॉरनेडो (TARNADO ) उष्ण कटिबंधीय तथा उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में मुख्यतः संयुक्त राज्य अमेरिका तथा गौण रूप से आस्ट्रेलिया में उत्पन्न होने वाले लघु चक्रवातों को टॉरनेडो कहते हैं। आकार की तुलना में इनका प्रभाव अत्यन्त प्रलयंकारी होता है। इनका आकार एक कीप के समान होता है। ऊपर के चौड़े भाग में कपासी वर्षी मेघ होते हैं। इसके आगमन के समय घने बादल छा जाने से दिन में ही अंधकार हो जाता है तथा वायुदाब निम्नतम हो जाता है। प्रचण्ड वायु प्रवाह में पेड़, मकान, वाहन आकाश में उड़ने लगते हैं। कभी-कभी किसी एक ही क्षेत्र में कई स्थानों पर एक साथ अनेक टॉरनेडो उत्पन्न हो जाते हैं, तो महाविनाश की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। 1974 में संयुक्त राज्य के मध्यवर्ती प्रान्तों में एक ही दिन में लगभग 150 टॉरनेडो आये थे। यद्यपि यह वर्ष के किसी भी भाग में आ सकते हैं, किन्तु बसन्त व ग्रीष्म ऋतु में अधिक उत्पन्न होते हैं। टॉरनेडो में चक्रवातों की तरह केन्द्र में शान्त प्रदेश नहीं पाया जाता है। ........... English Translation............ Tornado  (TARNADO) Small cyclones originating in tropical and subtropical reg...

उष्णकटिबन्धीय चक्रवात TROPICAL CYCLONES

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उष्णकटिबन्धीय चक्रवात ( TROPICAL CYCLONES ) सामान्यतः कर्क तथा मकर रेखाओं के मध्य स्थित क्षेत्र में उत्पन्न चक्रवातों को उष्ण कटिबंधीय चक्रवात कहते हैं। व्यापारिक हवाओं की पेटी में मुख्यतः महाद्वीपों के पूर्वी भागों में एवं उष्णकटिबन्धीय मानसून प्रदेशों में उत्पन्न एवं विकसित होने वाली सभी प्रकार के विक्षोभ उष्णकटिबन्धीय चक्रवातों की श्रेणी में आते हैं। इनको क्षेत्रवार विविध नामों से पुकारते हैं। जलवायु व मौसम विज्ञान के अध्ययन में इनका विशेष महत्व है। यह प्रभावित क्षेत्र में तेजी से उग्र रूप धारण करके उत्पात मचाते रहते हैं। शीतोष्ण चक्रवातों के समान इनमें समरूपता नहीं होती है। सामान्य विशेषतायें -उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में कुछ ऐसी सामान्य विशेषतायें होती हैं, जिनके आधार पर उनको पहचाना जा सकता है (i) इनके आकार में पर्याप्त अन्तर होता है। इनका व्यास 50 से 300 किमी. तक होता है। (ii) इनकी गति में पर्याप्त भिन्नता पायी जाती है। कुछ 32 किमी. प्रति घण्टा की गति से भ्रमण करते है. तो कुछ 200 किमी. प्रति घण्टा से भी अधिक रफ्तार से बढ़ते हैं। (iii) ये सागरों के ऊपर तीव्र गति से चलते हैं, किन्तु...