थॉर्नवेट का विश्व जलवायु वर्गीकरण (THORNTHWAITE'S CLASSIFICATION OF WORLD CLIMATES)
थॉर्नवेट का विश्व जलवायु वर्गीकरण (THORNTHWAITE'S CLASSIFICATION OF WORLD CLIMATES)
प्रसिद्ध अमेरिकी ऋतु विज्ञानवेत्ता थॉर्नवेट ने जलवायु वर्गीकरण को दो विशिष्ट भागों में वर्गीकृत करके वर्णन किया है। प्रथम वर्गीकरण 1931 और 1933 में प्रस्तुत किया तथा दूसरा 1948 में प्रस्तुत किया। थॉर्नवेट ने आगे चलकर 1955 में अपने वर्गीकरण को संशोधित भी किया। दोनों वर्गीकरण प्रायः एक जैसे मालूम पड़ते हैं, लेकिन सूक्ष्मता से देखा जाए तो इन दोनों में अन्तर है। 1933 में किए गए वर्गीकरण में केवल पौधों को ही मौसम विज्ञान का एक विशेष यन्त्र माना, जिसकी सहायता से मौसम के तत्वों की जानकारी की जा सकती है। 1948 में द्वितीय वर्गीकरण में पौधों को केवल प्राकृतिक साधन (Natural Means) के रूप में माना है जो कि धरातलीय जल को वाष्पीकरण की क्रिया द्वारा वायुमण्डल में पहुंचाते रहते हैं।
थॉर्नवेट ने विश्व जलवायु वर्गीकरण में वर्षण की प्रभाविता, तापीय दक्षता व वर्षा के मौसमी वितरण को ही मुख्य माना है। उसने इन तीन तत्वों के संयोग से 23 वर्गों को मान्यता दी। यदि इनका सम्पूर्णतः विस्तृत उप-विभाजन किया जाए तो 120 वर्ग तैयार होते हैं। यहां पर थॉर्नवेट के वर्गीकरण के आधारभूत तथ्यों को ही मुख्यतः समझाया गया है।
(1) वर्षण की प्रभाविता (Precipitation Effectiveness)
थॉर्नवेट ने इस तत्व में अंग्रेजी के दो बड़े अक्षरों को आधार माना। वर्षा के लिए (P) तथा वाष्पन के लिए (E) का प्रयोग किया। इन दोनों अक्षरों के द्वारा वर्षा की प्रभाविता को सही-सही ज्ञात करने के लिए एक सूत्र P/E माना, जिसके द्वारा 12 महीनों की कुल प्राप्त वर्षा को 12 महीने के कुल वाष्पीकरण से भाग दे दिया जाता है। वाष्पन की गणना करने के लिए थॉर्नवेट ने वाष्पन मापने के यन्त्रों का प्रयोग किया। ऐसे यन्त्र तब संयुक्त राज्य अमेरिका के अलावा संसार के किसी भी देश में उपलब्ध नहीं थे। वर्षण प्रभाविता
अनुपात से अभिप्राय-
साहित्य भवन पब्लिकेशन्स -सम्पूर्ण वर्षण का वह भाग जो वनस्पति की उत्पत्ति व विकास को प्रभावित करता है।
वाष्पन सूत्र (P/E) द्वारा इस वर्गीकरण को आर्द्रता की स्थिति के अनुसार 5 वृहद भागों में बांटते प्रत्येक आई प्रदेश का वनस्पति के विशिष्ट प्रारूप से सम्बन्ध बताया गया :
3) वर्षा का मौसमी वितरण (Seasonal Distribution of Precipitation) ऐसा बहुत कम पाया जाता है कि वर्षा वर्षपर्यन्त समान होती रहे। यदि कुछ स्थानों पर ऐसा होता है
के तब भी वहां की जलवायु में बहुत अन्तर पाया जाता है। इस अन्तर के अनेक कारण हैं, विभिन्न तत्वों पर आधारित हैं। वर्षा का मौसमी वितरण ग्रीष्म, शीत एवं बसन्त ऋतु के अनुसार दर्शाया जाता है।
थॉर्नवेट ने वर्षा के मौसमी वितरण को आगे और उपविभागों में बांटा, जिनको अंग्रेजी के छोटे अक्षरों (r, s, w, w' एवं d) द्वारा प्रदर्शित किया।
इस प्रकार, किसी स्थान की जलवायु उपर्युक्त तत्वों तथा सूचकांकों के समूहन के आधार पर निर्धारित की जाती है। इसके अनुसार, किसी क्षेत्र की जलवायु को तीन वर्णों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
थॉर्नवेट के वर्गीकरण के अनुसार भारत का अधिकांश भाग CA'w उपविभाग में आता है। इसके अलावा BAw, AAT, CBw, DAW जलवायु उपविभाग भी भारत में पाए जाते हैं।
थॉनवेट के जलवायु वर्गीकरण का मूल्यांकन-थॉर्नवेट के वर्गीकरण की प्रमुख विशेषतायें निम्न हैं
(i) विभिन्न जलवायु प्रकारों में विभेद करने के लिये दो महत्वपूर्ण सूचकांकों (वर्षण दक्षता तथा तापीय दक्षता) का प्रयोग किया गया है।
(ii) विभिन्न जलवायु प्रकारों को इंगित करने के लिये विभिन्न वर्गों का उपयोग किया गया है। (iii) जलवायु प्रदेशों के निर्धारण में वनस्पति को प्रमुख आधार बनाया गया है।
(iv) थॉर्नवेट ने अपनी योजना में रही कमियों को दो बार संशोधित योजना प्रस्तुत करके दूर करने का प्रयास किया।
आलोचना
थॉर्नवेट के जलवायु के वर्गीकरण की भी आलोचना की गई :
(1) थॉर्नवेट ने अपना दूसरा वर्गीकरण जलवायु सम्बन्धी तत्वों के आधार पर वर्णित किया है, जिसमें कि भौतिक तत्वों (धरातल, वनस्पति, मिट्टी आदि) का प्रभाव नहीं बताया गया है।
(2) यह वर्गीकरण सैद्धान्तिक दृष्टि से तर्कपूर्ण नहीं होने से जलवायुविज्ञानवेत्ता पी. आर. क्रो ने इसे गलत सिद्ध कर दिया।
(3) वाष्प मापन के लिए जिस सूत्र का प्रयोग किया वह प्रत्येक स्थान की वाष्प मापन के लिए सही नहीं बैठता है। अतः वर्गीकरण त्रुटिपूर्ण है।
(4) थॉर्नवेट ने अपने वर्गीकरण को बहुत विस्तृत एवं जटिल बना दिया है।
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