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भीमसेनी एकादशी

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भीमसेनी एकादशी , जिसे निर्जला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र व्रत है। यह ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि (एकादशी) को मनाई जाती है। इसे सभी एकादशियों में सबसे कठिन और फलदायी माना जाता है। भीमसेनी एकादशी क्यों कहते हैं? इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी कहने के पीछे एक पौराणिक कथा है। कहा जाता है कि पांडवों में सबसे बलशाली भीमसेन को भूख बहुत लगती थी और वे सभी एकादशियों का व्रत नहीं रख पाते थे। तब उन्होंने महर्षि वेदव्यास से कोई ऐसा व्रत बताने का अनुरोध किया, जिसके पालन से उन्हें सभी एकादशियों का पुण्य मिल जाए। महर्षि वेदव्यास ने उन्हें निर्जला एकादशी का व्रत रखने की सलाह दी। इस व्रत में बिना पानी और अन्न के रहना होता है। भीमसेन ने इस कठिन व्रत का पालन किया, जिसके बाद उन्हें सभी एकादशियों का फल प्राप्त हुआ। इसी कारण इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी कहा जाने लगा। महत्व:  * सभी एकादशियों का फल: माना जाता है कि एक मात्र निर्जला एकादशी का व्रत रखने से साल की सभी 24 एकादशियों का फल प्राप्त होता है।  * पापों का नाश: इस व्रत ...

समुद्र का पानी खारा क्यों है?

समुद्र का पानी खारा क्यों है? समुद्र का पानी खारा (नमकीन) होने का मुख्य कारण उसमें घुले हुए लवण (salts) हैं. यह प्रक्रिया लाखों सालों से चल रही है. इसके पीछे कई कारण और सिद्धांत हैं: मुख्य कारण और सिद्धांत:  * चट्टानों से लवणों का घुलना (Dissolution of Salts from Rocks):    * नदियों द्वारा लवणों का बहकर आना: जब बारिश होती है, तो पानी ज़मीन पर गिरता है और नदियों, नालों और धाराओं में बहने लगता है. अपने रास्ते में यह पानी ज़मीन और चट्टानों (rocks) से होकर गुज़रता है. इस दौरान, यह पानी चट्टानों में मौजूद खनिजों (minerals) और लवणों को अपने में घोल लेता है. ये घुले हुए लवण फिर नदियों के द्वारा समुद्र में पहुँच जाते हैं.    * ज़मीन के अंदर से रिसाव: ज़मीन के अंदर भी पानी होता है जो चट्टानों और मिट्टी से घुलकर लवणों को अपने में घोल लेता है. यह पानी भी अंततः समुद्र में जा मिलता है.  * जलज्वालामुखी क्रिया (Hydrothermal Vents):    * समुद्र की गहराई में, जहाँ टेक्टोनिक प्लेट्स आपस में टकराती हैं, वहाँ जलज्वालामुखी (hydrothermal vents) होते हैं. इन वेंट्स से ग...

देवी सिद्धिदात्री की कथा: जन्म, स्वरूप और महत्व | नवरात्रि का नवां दिन"• "Siddhidatri Devi Ki Puranik Katha aur Mahatva | Navratri Day 9"

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देवी सिद्धिदात्री: सिद्धियों की देवी की दिव्य कथा नवरात्रि के नौवें दिन देवी दुर्गा के नवें स्वरूप देवी सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। उनका नाम दो शब्दों से मिलकर बना है – "सिद्धि" यानी आध्यात्मिक शक्तियाँ और "दात्री" यानी देने वाली। अर्थात, सिद्धिदात्री वह देवी हैं जो अपने भक्तों को अद्भुत सिद्धियाँ प्रदान करती हैं। वे सभी प्रकार की सिद्धियों की दात्री मानी जाती हैं, जिनसे साधक मोक्ष और आत्मज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। देवी सिद्धिदात्री का जन्म और कथा पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब सृष्टि का आरंभ हुआ, तब चारों ओर केवल अंधकार और शून्यता थी। उस समय आदिशक्ति का प्राकट्य हुआ। उन्होंने ब्रह्मा, विष्णु और महेश को उत्पन्न किया, ताकि वे सृष्टि की रचना, पालन और संहार का कार्य संभाल सकें। परंतु उस समय महादेव यानी भगवान शिव अर्धनारीश्वर रूप में थे – अर्थात आधे शरीर में पुरुष और आधे में स्त्री। महादेव ने सृष्टि के कार्यों के लिए शक्ति से प्रार्थना की, तब आदिशक्ति ने सिद्धिदात्री रूप में प्रकट होकर शिव को सभी आठ प्रमुख सिद्धियाँ प्रदान कीं – अणिमा, महिमा, ग...

नवरात्रि का आठवां दिन / मां महागौरी: सौंदर्य, शुद्धता और करुणा की देवी / Eighth Day of Navratri / Maa Mahagauri: Goddess of Beauty, Purity and Compassion

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मां महागौरी: सौंदर्य, शुद्धता और करुणा की देवी परिचय नवरात्रि के आठवें दिन मां दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी की पूजा की जाती है। मां महागौरी का नाम उनके अत्यंत गौर वर्ण के कारण पड़ा। उनका स्वरूप सौंदर्य, शांति और करुणा का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि मां महागौरी की पूजा से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और भक्त को शुद्धता तथा मानसिक शांति प्राप्त होती है। जन्म कथा पौराणिक मान्यता के अनुसार, मां पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। उन्होंने हिमालय की पर्वतीय गुफाओं में हजारों वर्षों तक उपवास और कठिन तपस्या की। इस दौरान उनका शरीर पूरी तरह काला हो गया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें स्वीकार किया, और गंगाजल से स्नान कराते ही उनका शरीर अत्यंत उज्ज्वल, उजला और सुंदर हो गया। उसी रूप को महागौरी कहा गया। कई कथाओं में यह भी कहा गया है कि शुंभ-निशुंभ नामक राक्षसों के आतंक से देवताओं को बचाने के लिए देवी ने यह रूप धारण किया था। मां महागौरी का स्वरूप शांत और कोमल है, लेकिन वह भक्तों की रक्षा के लिए रौद्र रूप भी धारण कर सकती हैं। मां महाग...

नवरात्रि का सातवां दिन / माता कालरात्रि: अंधकार को हराने वाली देवी की अद्भुत कथा / Seventh Day of Navratri / Mata Kalratri: The Amazing Story of the Goddess Who Defeated Darkness

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माता कालरात्रि: अंधकार को हराने वाली देवी की अद्भुत कथा परिचय हिंदू धर्म में देवी दुर्गा के नौ रूपों की आराधना नवरात्रि के नौ दिनों में की जाती है। इनमें सातवें दिन की देवी हैं माता कालरात्रि । इनका नाम सुनते ही एक रहस्यमयी और शक्तिशाली स्वरूप की छवि मन में उभरती है। माता कालरात्रि का रूप जितना भयावह है, उनका हृदय उतना ही कोमल और भक्तवत्सल है। वे सभी प्रकार के भयों और अज्ञान के अंधकार को नष्ट करने वाली देवी हैं। माता कालरात्रि की उत्पत्ति की कथा जब दानवों और असुरों का अत्याचार चरम पर पहुँच गया था, तब देवताओं ने देवी दुर्गा से रक्षा की प्रार्थना की। राक्षस शुंभ-निशुंभ और उनका सेनापति चंड-मुंड बहुत शक्तिशाली हो चुके थे। तब देवी दुर्गा ने अपने क्रोध से एक अत्यंत विकराल रूप धारण किया, जो काल की तरह भयानक और रात की तरह काली थी। इस रूप से ही माता कालरात्रि की उत्पत्ति हुई। एक अन्य कथा के अनुसार, जब राक्षस रक्तबीज को मारना असंभव हो गया — क्योंकि उसकी रक्त की हर बूंद से एक नया राक्षस जन्म लेता था — तब माता ने अपने भयंकर रूप में प्रकट होकर उसका वध किया। उन्होंने अपने रक्त...

नवरात्रि का छठवां दिन / माता कात्यायनी: शक्ति और साधना की देवी / Mata Katyayani: Goddess of power and meditation

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माता कात्यायनी: शक्ति और साधना की देवी माता कात्यायनी, मां दुर्गा के छहवें स्वरूप के रूप में जानी जाती हैं। नवरात्रि के छठे दिन इनकी पूजा की जाती है। यह देवी शक्ति, पराक्रम और साहस की प्रतीक हैं। इनकी आराधना करने से साधक को अद्भुत शक्ति और बुद्धि प्राप्त होती है। माता कात्यायनी की उत्पत्ति, उनकी कथा और महत्व के बारे में जानना अत्यंत रोचक है। माता कात्यायनी की उत्पत्ति कथा पौराणिक कथाओं के अनुसार, महर्षि कात्यायन एक महान तपस्वी थे। उन्होंने घोर तपस्या करके मां भगवती को प्रसन्न किया और उनसे यह वरदान मांगा कि वे उनकी पुत्री के रूप में जन्म लें। देवी ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें यह वरदान दिया। उसी समय असुर महिषासुर ने तीनों लोकों में उत्पात मचाना शुरू कर दिया था। देवताओं ने भगवान विष्णु, महादेव और ब्रह्मा से सहायता मांगी। तब त्रिदेवों के तेज से एक अद्भुत शक्ति प्रकट हुई, जो स्वर्ण आभा से युक्त थी। महर्षि कात्यायन ने देवी की पूजा-अर्चना की और वे उनकी पुत्री रूप में प्रकट हुईं। इस कारण इन्हें ‘कात्यायनी’ कहा जाता है। महिषासुर वध माता कात्यायनी ने महिषासुर का संहार ...

नवरात्रि का पांचवां दिन स्कंदमाता: शक्ति और मातृत्व की देवी / Skandamata: Goddess of strength and motherhood

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स्कंदमाता: शक्ति और मातृत्व की देवी नवरात्रि के पाँचवें दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है। वे माँ दुर्गा का पंचम स्वरूप हैं और अपने भक्तों को प्रेम, करुणा और शक्ति प्रदान करती हैं। उनका स्वरूप दिव्य और शांतिदायक होता है। वे कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं, इसलिए उन्हें 'पद्मासना' भी कहा जाता है। उनकी गोद में कुमार कार्तिकेय (स्कंद) विराजमान होते हैं, इसीलिए उन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। जन्म और कथा स्कंदमाता के जन्म और उनकी कथा का संबंध माँ पार्वती और भगवान शिव से है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब असुर तारकासुर का अत्याचार बढ़ गया, तो देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे इस संकट से मुक्ति दिलाएँ। शिव और पार्वती के पुत्र स्कंद (कार्तिकेय) ने तारकासुर का वध किया और देवताओं को पुनः सुख-शांति प्रदान की। माँ पार्वती, जो स्वयं स्कंद की माता थीं, स्कंदमाता के रूप में पूजी जाने लगीं। माँ स्कंदमाता का स्वरूप स्कंदमाता की चार भुजाएँ होती हैं। वे एक हाथ में कमल का फूल धारण करती हैं, दूसरे हाथ में स्कंद (कार्तिकेय) को पकड़े रहती हैं, और उनके दो अन्य हाथ वरद मुद्रा तथा अभ...