भीमसेनी एकादशी

भीमसेनी एकादशी
, जिसे निर्जला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र व्रत है। यह ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि (एकादशी) को मनाई जाती है। इसे सभी एकादशियों में सबसे कठिन और फलदायी माना जाता है।
भीमसेनी एकादशी क्यों कहते हैं?
इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी कहने के पीछे एक पौराणिक कथा है। कहा जाता है कि पांडवों में सबसे बलशाली भीमसेन को भूख बहुत लगती थी और वे सभी एकादशियों का व्रत नहीं रख पाते थे। तब उन्होंने महर्षि वेदव्यास से कोई ऐसा व्रत बताने का अनुरोध किया, जिसके पालन से उन्हें सभी एकादशियों का पुण्य मिल जाए। महर्षि वेदव्यास ने उन्हें निर्जला एकादशी का व्रत रखने की सलाह दी। इस व्रत में बिना पानी और अन्न के रहना होता है। भीमसेन ने इस कठिन व्रत का पालन किया, जिसके बाद उन्हें सभी एकादशियों का फल प्राप्त हुआ। इसी कारण इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी कहा जाने लगा।
महत्व:
 * सभी एकादशियों का फल: माना जाता है कि एक मात्र निर्जला एकादशी का व्रत रखने से साल की सभी 24 एकादशियों का फल प्राप्त होता है।
 * पापों का नाश: इस व्रत को करने से सभी पापों का नाश होता है और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
 * भगवान विष्णु की कृपा: यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है, और इसका पालन करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की असीम कृपा प्राप्त होती है।
 * मनोवांछित फल: सच्चे मन से इस व्रत को करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
भीमसेनी एकादशी 2025 में कब है?
इस वर्ष (2025) निर्जला एकादशी का व्रत 6 जून, शुक्रवार को रखा जाएगा। एकादशी तिथि 6 जून को रात लगभग 2 बजकर 15 मिनट पर शुरू होगी और 7 जून को सुबह 4 बजकर 47 मिनट पर समाप्त होगी। उदयातिथि के अनुसार, व्रत 6 जून को ही रखा जाएगा। पारण (व्रत खोलने का) समय 7 जून को दोपहर 1 बजकर 44 मिनट से शाम 4 बजकर 31 मिनट तक है।
पूजा विधि और नियम:
 * निर्जल व्रत: यह व्रत बिना अन्न और जल ग्रहण किए किया जाता है। यह सबसे कठिन नियमों में से एक है।
 * भगवान विष्णु की पूजा: इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। भक्त षोडशोपचार या पंचोपचार पूजन करते हैं।
 * दान: निर्जला एकादशी के दिन जरूरतमंद लोगों को दान करने का विशेष महत्व है। जल, वस्त्र, धन, भोजन आदि का दान करना शुभ माना जाता है। जल से भरा घड़ा दान करने का भी अत्यधिक महत्व है।
 * मंत्र जाप: इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम और नारायण कवच का पाठ करना भी फलदायी होता है।
 * तुलसी पूजा: भगवान विष्णु को तुलसी अत्यंत प्रिय है, इसलिए इस दिन तुलसी की भी विशेष पूजा की जाती है।
यह व्रत अत्यंत पवित्र और फलदायी माना जाता है, और जो भक्त इसे पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ करते हैं, उन्हें भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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