हरेली तिहार: छत्तीसगढ़ की हरियाली का पर्व Hareli Tihar: Festival of Greenery in Chhattisgarh
हरेली तिहार: छत्तीसगढ़ की हरियाली का पर्व
हरेली यानी ‘हरियाली’—छत्तीसगढ़ का पहला और प्रमुख तिहार, जो सावन मास की कृष्ण पक्ष अमावस्या (श्रावण अमावस्या) को बड़े उत्साह से मनाया जाता है। यह त्यौहार आमतौर पर जुलाई–अगस्त में आता है और यह वर्षा-ऋतु, हरियाली और समृद्धि का प्रतीक है ।
🌾 त्यौहार की खासियत और इतिहास
हिन्दू कैलेंडर में दिन: सावन की अमावस्या
महत्व: यह कृषि प्रधान समाज का पहला पर्व है, जिसमें खेती की शुरआत, प्राकृतिक ऋतु और समृद्धि का आभार व्यक्त किया जाता है ।
नाम का अर्थ: हरेली शब्द हिंदी के ‘हरियाली’ से आया है, जिसका अर्थ है प्रकृति में ताज़गी और नवजीवन ।
🧿 पूजा-पाठ और रीति-रिवाज
1. खेती-किसानी का आभार
किसान अपने खेतों में हल, कुदाली, फावड़ा, ट्रैक्टर आदि कृषि उपकरणों की पवित्र पूजा करते हैं और उन्हें चावल-आटे की चिलों से सजाते हैं ।
2. वृक्ष-स्वास्थ्य उपाय
खेतों में भेलवा (बेलवा) की डालियाँ लगाई जाती हैं और घरों के मुख्य द्वार पर नीम की ताज़ा पत्तियाँ लटकाई जाती हैं—नीम की प्राकृतिक कीट-रोधी ताकत का लाभ लेने के लिए ।
3. पशुधन और मावली रक्षा
पशुधन को विशेष औषधीय व्यंजन खिलाए जाते हैं, जिनमें चावल, आटा और जड़ी-बूटियों का मिश्रण होता है—यह बारिश के मौसम में बीमारियों से बचाव करता है ।
🎉 लोक आयोजन और खेल
गेड़ी नृत्य (बाँस की ऊँची गेंड़ी पर): युवा पारंपरिक बाँस की गेंड़ी बनाकर उस पर नृत्य, दौड़ और प्रतिस्पर्धा करते हैं—यह अत्यंत रोमांचक और हाथ-पैर का संतुलन मांगने वाला खेल है ।
खेल-कूद: कबड्डी, खो-खो, नारियल फेंक प्रतियोगिताएँ आयोजित होती हैं, जिसमें सभी उम्र के लोग सम्मिलित होते हैं ।
प्रेत रक्षक उपाय: अमावस्या की रात होने के कारण अनिष्ट शक्तियों से बचाव हेतु घर की दीवारों पर गोबर से चित्र और लोहार द्वारा पाती (लौह की नुकीली कील) चोकथों पर ठोंकी जाती है
🙏 देवी-पूजा एवं समृद्धि की कामना
कुल देवता, ग्राम देवी और विशेष कर ‘कुटकी दाई’ की पूजा होती है, जो अच्छी फसल और सौभाग्य की देवी मानी जाती हैं ।
पूजा में चावल-आटे की चिले (चील्हा), गुड़ से बनी व्यंजन और प्रसाद चढ़ाया जाता है, जिसे लोग एक-दूसरे में बांटते भी हैं ।
🌿 सांस्कृतिक और सामाजिक महत्त्व
यह पर्व गाँवों में सभी जाति, लिंग और आयु वर्ग को मिल-जुलकर मानाने का अवसर प्रदान करता है।
आधुनिक समय में इसे राष्ट्रीय और शहरी स्तरीय कार्यक्रमों के माध्यम से भी प्रदर्शित किया जा रहा है—जैसे दिल्ली के छत्तीसगढ़ भवन में बड़े आकर्षक सांस्कृतिक आयोजन ।
छत्तीसगढ़ सरकार इसे संरक्षण के तहत रखती है और स्थानीय संस्कृति बचाने व बढ़ावा देने हेतु योजनाएं चलाती है ।
🗓️ यह वर्ष कब मनाएं?
2024: 4 अगस्त (रविवार) को सावन अमावस्या पर हरेली रही ।
2025: 24 जुलाई (गुरुवार) को तौहार मनाया जाएगा ।
कुछ सुझाव
स्थानीय देवी-पूजा और पारंपरिक व्यंजनों के साथ हिस्सा लें।
गेड़ी प्रतियोगिताओं और लोकखेलों की प्रस्तुति देखना न भूलें।
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