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भगवान जगन्नाथ जी: इतिहास और पौराणिक गाथाएं Lord Jagannath: History and Mythology

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भगवान जगन्नाथ जी: इतिहास और पौराणिक गाथाएं परिचय भगवान जगन्नाथ को हिन्दू धर्म में विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण का रूप माना जाता है। उड़ीसा (ओडिशा) के पुरी नगर में स्थित उनका भव्य मंदिर विश्वप्रसिद्ध है, जिसे चार धामों में से एक माना जाता है। जगन्नाथ का अर्थ है – "जगत के स्वामी"। वे अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ मंदिर में विराजमान हैं। इतिहासिक पृष्ठभूमि पुरी का जगन्नाथ मंदिर 12वीं शताब्दी में गंगा वंश के राजा अनंतवर्मा चोडगंग देव द्वारा बनवाया गया था। इस मंदिर की वास्तुकला उत्कल शैली (कलिंगा वास्तुशैली) का उत्कृष्ट उदाहरण है। मंदिर का निर्माण करीब 1136 ईस्वी के आसपास हुआ माना जाता है। इसके पहले भी इस स्थान पर एक आदिम रूप में भगवान नीलमाधव की पूजा होती थी, जिसे एक आदिवासी राजा विश्ववसु करते थे। राजा इंद्रद्युम्न (जो मालवा के राजा थे) ने भगवान नीलमाधव की खोज करके वहां मंदिर निर्माण का संकल्प लिया। --- पौराणिक कथा: भगवान के अधूरे रूप की कथा भगवान जगन्नाथ की मूर्ति का आकार अनोखा और अधूरा सा दिखता है – इनके हाथ और पैर पूरे नहीं हैं। इसके पीछे एक दिलचस्प कथा है:...

भीमसेनी एकादशी

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भीमसेनी एकादशी , जिसे निर्जला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र व्रत है। यह ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि (एकादशी) को मनाई जाती है। इसे सभी एकादशियों में सबसे कठिन और फलदायी माना जाता है। भीमसेनी एकादशी क्यों कहते हैं? इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी कहने के पीछे एक पौराणिक कथा है। कहा जाता है कि पांडवों में सबसे बलशाली भीमसेन को भूख बहुत लगती थी और वे सभी एकादशियों का व्रत नहीं रख पाते थे। तब उन्होंने महर्षि वेदव्यास से कोई ऐसा व्रत बताने का अनुरोध किया, जिसके पालन से उन्हें सभी एकादशियों का पुण्य मिल जाए। महर्षि वेदव्यास ने उन्हें निर्जला एकादशी का व्रत रखने की सलाह दी। इस व्रत में बिना पानी और अन्न के रहना होता है। भीमसेन ने इस कठिन व्रत का पालन किया, जिसके बाद उन्हें सभी एकादशियों का फल प्राप्त हुआ। इसी कारण इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी कहा जाने लगा। महत्व:  * सभी एकादशियों का फल: माना जाता है कि एक मात्र निर्जला एकादशी का व्रत रखने से साल की सभी 24 एकादशियों का फल प्राप्त होता है।  * पापों का नाश: इस व्रत ...