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Showing posts from November, 2020

चक्रवात Cyclone

चक्रवात  (CYCLONE) सामान्यतः चक्रवात से अभिप्राय निम्न वायुदाब के केन्द्र से होता है, जिसके चारों ओर बाहर की तरफ वायुदाब क्रमशः बढ़ता जाता है। इसके परिणामस्वरूप सभी दिशाओं से हवाएं भीतर केन्द्र की ओर प्रवाहित होने लगती हैं। फैरल के नियम के अनुसार ये हवाएं मुड़ जाती हैं तथा केन्द्र तक पहुंचने की अपेक्षा उसकी परिक्रमा करने लगती हैं। इन हवाओं की दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की दिशा के विपरीत (anti clockwise) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी के अनुसार होती है। पी. लेक के अनुसार, “चक्रवात उस निम्न वायुदाब के क्षेत्र का नाम है, जो कि चारों ओर से सटी हुई समभार रेखाओं से घिरा होता है जिनकी आकृति लगभग अण्डाकार होती है।'' ट्रिवार्था के शब्दों में, “चक्रवात अपेक्षाकृत वे निम्न वायुदाब क्षेत्र होते हैं जो संकेन्द्रीय एवं सटी हुई समदाब रेखाओं से घिरे होते हैं।" चक्रवातों का आकार प्रायः अण्डाकार, गोलाकार या v अक्षर के समान होता है। ....... English Translation....... Cyclone  (CYCLONE) Generally, cyclone refers to the center of low pressure, around which the pressure increases outward. ...

Effect of climate. वाताग्र का मौसम पर प्रभाव

      वाताग्र  का मौसम पर प्रभाव  वाताग्र  का निर्माण दो विपरीत तापमान वाली वायुराशियों के मिलने के कारण होता है। अतः वाताग्र को उत्तर से दक्षिण की ओर पार करने पर विपरीत मौसम का आभास होता है। वातान अपने भौतिक लक्षणों के अनुसार क्षेत्र विशेष के मौसम पर तत्काल प्रभाव डालकर उसमें परिवर्तन लाते हैं। उष्ण वाताग्र का प्रभाव उसकी धरातलीय स्थिति से काफी पहले या आगे तक दिखाई देता है। उष्ण वाताग्र काफी ऊंचाई तक अनेक प्रकार के वर्षा वाले बादलों के निर्माण में सहायक होता है। इससे वहां पर्याप्त वर्षा भी हो जाती है। उष्ण वाताग्र का ढाल हल्का होने से वर्षा लंबे समय तक एवं विस्तृत क्षेत्र में होती है। संरोधित वातान में भी ऊंचाई पर फैली गरम वायु की नमी के संघनन से हल्की वर्षा हो सकती है। शीत वाताग्र जो कि शीतोष्ण चक्रवात के पिछले भागों में विकसित होता है वहां पर उष्ण वायु को तेजी से ऊपर उठना पड़ता है। यहां पर ठण्डी वायु आक्रामक होती है। अतः गर्जन, तर्जन, ओला वृष्टि, हिमपात, तेज हवा आदि सामान्यतः विकसित होते रहते हैं। वर्षा तीव्र होती है, किन्तु थोड़े समय के लिये ही होती है।...

Aeration वायुराशियों के वाताग्र या सीमान्त

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वायुराशियों के  वाताग्र  या सीमान्त (FRONTS OF AIR MASSES) वाताग्र या सीमान्त वह लहरदार एवं विशेष ढाल वाला तल होता है, जहां कि आमने-सामने से दो भिन्न-भिन्न भौतिक लक्षणों वाली वायुराशियां आकर मिलती हैं। ब्लेयर के शब्दों में, “जिस सतह या रेखा के सहारे वायुराशियां पृथक् रहती हैं उसे वाताग्र कहते हैं।" जबकि ट्रिवार्था का कहना है कि “वाताग्र कोई रेखा नहीं होती अपितु पर्याप्त चौड़ाई वाले (5 से 75 किमी) ऐसे क्षेत्र होते हैं जहां से भिन्न स्वभाव वाली वायुराशियां आमने-सामने से आकर अभिसरण (Converge) करती हैं।'' इस प्रकार वाताग्र से आशय उस ढालू सीमा या सीमान्त से है जिसके सहारे दो विपरीत स्वभाव वाली हवायें मिलती हैं। वाताग्र न तो धरातल के ऊपर लम्बवत होता है और न ही धरातल के समानान्तर क्षैतिज होता है। बल्कि वह कुछ कोण पर झुका हुआ होता है। जलवायु विज्ञान में वाताग्र का अत्यधिक महत्व है, क्योंकि ये मौसम की विशिष्ट दशाओं को जन्म देते हैं, जिन्हें चक्रवात, प्रतिचक्रवात कहते हैं। इसीलिये वाताग्र को चक्रवातों व प्रतिचक्रवातों का पलना कहते हैं। (Fronts are cradle of cyclones and anticyclones...

आस्ट्रेलिया की वायुराशियां Australian Airfares

  6. आस्ट्रेलिया की वायुराशियां आस्ट्रेलिया पर निम्न दो वायुराशियों का प्रभाव महत्वपूर्ण रहा है (1) उष्णकटिबन्धीय महाद्वीपीय वायुराशि (cTw)-आस्ट्रेलिया का अधिकांश भाग उष्ण मरुस्थलीय है। इस प्रभाव से यह ग्रीष्मकाल में बहुत अधिक उष्ण व शुष्क बना रहता है। यही इस महाद्वीपीय वायुराशि का उद्गम क्षेत्र भी है। यह वायुराशि तापमान बढ़ाने में सहायक होती है। इसके कारण निम्न वायुदाब की दशा विकसित होने से नवम्बर से फरवरी के मध्य उत्तरी व पूर्वी आस्ट्रेलिया में पर्याप्त वर्षा हो जाती है। यहां भी उत्तरी तट पर संशोधित मानसूनी महासागरीय आर्द्र वायुराशि का प्रभाव बना रहता है। महाद्वीपीय वायुराशि ग्रीष्मकाल में सितम्बर से मार्च तक ही विशेष प्रभावी रहती है। शीतकाल में यहां पर स्थिर दशाएं विकसित होने लगती हैं। (2) ध्रुवीय महासागरीय वायुराशि ( mPwu)—आस्ट्रेलिया के दक्षिणी भाग में शीत ऋतु (जुलाई) में अण्टार्कटिका से उत्तर की ओर प्रवाहित पछुआ हवाएं चलने लगती हैं। इस समय वायु पेटियों के उत्तर से खिसकने से यहां ध्रुवीय महासागरीय (आर्द्र) वायुराशि चलती है। इसमें पर्याप्त नमी भी रहती है। इसके चलने से पछुआ हवा...

अफ्रीका महाद्वीप की वायुराशियां

  अफ्रीका महाद्वीप की वायुराशियां अफ्रीका महाद्वीप का अधिकांश भाग उष्ण एवं अर्दोष्ण कटिबन्ध में है, अतः यहां पर उष्ण वायुराशियों का ही विशेष प्रभाव पाया जाता है। यहां की मुख्य वायुराशियां निम्न हैं : ( 1) उष्णकटिबन्धीय महाद्वीपीय वायुराशि (cTwu)—इसका विकास सहारा एवं सूडान के अर्द्ध-शुष्क व शुष्क प्रदेशों में होता है। यह वायुराशि विशेष गरम, अस्थिर, शुष्क, किन्तु छिछली होती है। ग्रीष्मकाल में एवं उसके उत्तरार्द्ध में यह उत्तर की ओर प्रवाहित होकर भूमध्यसागरीय वायुराशि को प्रभावहीन बनाती है। इसी के प्रभाव से दक्षिणी यूरोप में धूल भरी आंधियां एवं गरम हवाओं के प्रभाव से बीच-बीच में तापमान बढ़ते जाते हैं। शुष्क व उष्ण वायुराशि होने से यह प्रभावित क्षेत्रों में वर्षा तो नहीं करती, किन्तु वाष्पीकरण की क्षमता अवश्य बढ़ा देती है। दक्षिणी अफ्रीका में उष्ण मरुस्थल बहुत सीमित क्षेत्र में फैला है। वहां अण्टार्कटिका की ओर से भी शीतल वायु एवं शीतल धाराओं का प्रभाव रहता है। अतः विषुवत् रेखा से दक्षिण में ऐसी वायुराशि विकसित नहीं हो पाती। ( 2) उष्णकटिबन्धीय महासागरीय वायुराशियां इसके दो उपभेद पाये ...

एशिया महाद्वीप की वायुराशियां Air from the continent of asia

  एशिया महाद्वीप की वायुराशियां एशिया महाद्वीप में वायुदाब की विशिष्ट एवं संशोधित व्यवस्था मौसम के अनुसार सुविकसित होती है। अतः इन वायुराशियों पर मानसूनी प्रभाव बना रहता है। यहां की मुख्य वायुराशियों की गतिशीलता एवप्रभाव क्षेत्र पर नवीन खोज के अनुसार जेट स्ट्रीम के सीमान्तों एवं उनसे प्रभावी स्वरूप का विशेष असर बना रहता है। यहां की मुख्य वायुराशियां निम्न हैं : (1) ध्रुवीय महाद्वीपीय ठण्डी वायुराशि (cPk) विश्व में एशिया महाद्वीप का आन्तरिक भाग शीतकाल में ठण्डी वायुराशियों का आदर्श प्रदेश है। यहां की कठोर सर्दियां, बर्फीला धरातल, उच्च वायुदाब, सामुद्रिक प्रभाव का अभाव आदि कारण मिलकर आदर्श प्रतिचक्रवातीय दशाएं पैदा करते हैं। अतः यहां पर विशाल पैमाने पर वृहद् ध्रुवीय महाद्वीपीय बर्फीली वायु राशि का विकास होता है। इसी के प्रभाव से हिमालय से उत्तर में केस्पियन सागर से चीन तक कई दिन तक कठोर बर्फीले तूफान चलते हैं। यहां की जलवायु में शुष्कता, अपवादस्वरूप बर्फ गिरना एवं स्वच्छ वायुमण्डल की विशेषताएं पाई जाती हैं। कई बार दक्षिणी व पूर्वी भागों में तापमान अचानक कई-कई दिन तक हिमांक बिन्दु से...

यूरोप की वायुराशियां. Airfires of Europe

 3. यूरोप की वायुराशियां यूरोप वायुराशियों के विकास एवं अध्ययन का आदर्श प्रदेश है। यहां विशेष प्रकार की वायुराशियों का अभिसरण (convergence) होता है। यह प्रदेश विविध गुणों वाले वातारों के लिए भी महत्वपूर्ण है। यहां पर विकसित या इस इस प्रदेश को प्रभावित करने वाली मुख्य वायुराशियां निम्नलिखित हैं : (1) ध्रुवीय महासागरीय वायुराशि (mPk)—यह वायुराशि मुख्यतः बर्फीली शीत ऋतु में ग्रीनलैण्ड से उत्तरी नार्वे के मध्य के सागरीय भाग में विकसित होती है। कठोर सर्दी के कारण यह सर्दियों में स्थिर रहती है। इस समय एशिया महाद्वीप पर भी महाद्वीपीय वायुराशि के विकसित होने की उत्तम दशाएं मिलती हैं। ग्रीष्म के आगमन के साथ ही यह वायुराशि अस्थिर होकर पूर्वी व दक्षिण-पूर्वी भाग की ओर आगे बढ़ती है, तब पर्वतीय भागों में उष्ण वायुराशि से टकराकर वर्षा करती है। ज्यों-ज्यों ग्रीष्म ऋतु में यह यूरोप की ओर बढ़ती है, इसमें संशोधन होता जाता है एवं अस्थिरता भी, परिवर्तन के कारण बनी रहती है। (2) ध्रुवीय महाद्वीपीय वायुराशि (cPk)—यह वायुराशि उत्तरी एशिया की ध्रुवीय वायुराशि का ही विस्तार है। इसकी सीमा उत्तरी यूरोप व रूस ...

दक्षिणी अमेरिका की वायुराशि. South American Air

दक्षिणी अमेरिका की वायुराशियां दक्षिणी अमेरिका की वायुराशियों का अध्ययन व्यापक आधार पर नहीं हो पाया है। फिर भी महाद्वीप का अधिकांश भाग उष्ण कटिबन्ध में है। पश्चिम में एण्डीज व ठण्डी धारा प्रशान्त तटीय व सागरीय प्रभाव को रोकते हैं। यहां पर तीन वायुराशियों का प्रभाव उल्लेखनीय है ; (1) उष्णकटिबन्धीय अन्ध महासागरीय वायुराशि (उत्तरी-पूर्वी व मध्यवर्ती भाग) र  (2) उष्णकटिबन्धीय महाद्वीपीय वायुराशि (मध्यवर्ती व पूर्वी भाग) (3) ध्रुवीय महासागरीय वायुराशि (दक्षिणवर्ती पूर्वी भाग) .......... English Translation............             South American Air  Airfires in South America have not been widely studied. Nevertheless, most of the continent is under warm belt. Andes and cold streams in the west prevent the coastal coastal and oceanic effects. The influence of the three Vayurashis is notable here;  (1) Tropical dark oceanic air (north-eastern and intermediate part)  (2) Tropical continental air (intermediate and eastern part)  (3) Polar...

उत्तरी अमेरिका की वायुराशियां. North American Air

(1) ध्रुवीय महाद्वीपीय वायुराशि (cP)—यह ठण्डी (k) शुष्क तथा स्थिर (s) होती है। इसका विकास कनाडा के आंतरिक भाग, अलास्का तथा हिमाच्छादित आर्कटिक सागर के विस्तृत भाग पर होता है। यह स्थिर रहती हैं, किन्तु बसन्त ऋतु में जब दक्षिण की ओर प्रवाहित होती हैं तो इस बर्फीली वायुराशि की निचली परत कुछ गरम होने लगती है, जिससे यह अस्थिर होकर विशेष प्रभावी बनती है। इसका ठण्डा प्रभाव मध्य संयुक्त राज्य व कभी-कभी दक्षिणी संयुक्त राज्य में पड़ता है। इसके कारण दक्षिणी भाग में मार्च-अप्रैल में दो तीन घण्टे में तापमान 10° से 18°C तक गिर जाते हैं। इससे कृषि एवं मानव कार्यक्षमता दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। (2) ध्रुवीय महासागरीय वायुराशियां (mP)—यह वायुराशियां दोनों ही ओर के महासागरों में विकसित होकर उत्तरी अमेरिका में प्रवेश करती हैं। अतः इन्हें अन्ध महासागरीय एवं प्रशान्त महासागरीय के नाम से पुकारते हैं। (अ) ध्रुवीय अन्ध महासागरीय वायुराशि (mPks : At)—इसका विकास कनाडा के पूर्वी तटीय भाग एवं निकट के सागरों में होता है। यह शीतऋतु में पछुआ हवाओं के पूर्वी भाग की ओर बहने से प्रायः प्रभावहीन रहती हैं। ग्रीष...

वायुराशियां. Airs

 वायुराशियां, वाताग्र एवं वायुमण्डलीय विक्षोभ (चक्रवात एवं प्रतिचक्रवात) (AIRMASSES, FRONTS AND ATMOSPHERIC DISTURBANCES (CYCLONE AND ANTICYCLONE)] वायुराशियां (AIRMASSES) वायुराशि या वायुसंहति वास्तव में वायुमण्डल का एक समरूपी व विस्तृत खण्ड होता है, जिसकी आर्द्रता, तापमान, वायुदाब आदि भौतिक दशाएं समान होती हैं। पेटर्सन के शब्दों में "वायुराशि वायु का एक वृहद् भाग है जो अपने भौतिक गुणों विशेषतः तापमान और b एक क्षैतिज दिशा में लगभग समान रहती हैं।” वॉन रिपर के शब्दों में, “वायु का वह विशाल पुंज जिसमें क्षैतिज तल पर भौतिक लक्षणों की प्रायः सर्वत्र समरूपता पायी जाये, उसे वायुराशि कहते हैं।" भूगोल परिभाषा कोश के अनुसार-“वायु की एक विस्तृत समांग राशि, जो एक बड़े भू-भाग पर छायी रहती है और ताप, आर्द्रता आदि के लक्षणों से युक्त, वातारों से परिबद्ध रहती है, को वायुराशि या वायुसंहति कहते हैं।" सारांश रूप में कह सकते हैं कि क्षैतिक रूप से तापमान एवं आर्दता सम्बन्धी समरूपता रखने वाले वायुमण्डल के विस्तृत भाग को वायुराशि कहते हैं। वायु राशि की विशेषतायें सामान्यतः वायुराशि में निम्न ...

वर्षा की उत्पत्ति Origin of rain

 वर्षा की उत्पत्ति वर्षा के लिए उष्ण-आर्द्र पवनों तथा आर्द्रताग्राही नाभिकों का असंख्य मात्रा में होना परम आवश्यक है। उष्ण-आर्द्र वायु, वायुमण्डल में ऊंचाई पर जाकर फैलती है तथा ठण्डी होती रहती है। आर्द्र पवनें जब ठण्डी होकर ओस बिन्दुओं तक आ जाएं तो यही जलकण धीरे-धीरे बादलों का रूप धारण कर लेते हैं। इनमें संघनन की क्रिया प्रारम्भ होने से छोटे-छोटे जलकण बड़े-बड़े जल कणों में परिवर्तित हो जाते हैं। जब ये बूंदों के रूप में स्थूल रूप धारण कर लेते हैं तो वायुमण्डल में इनका स्थिर रहना दुर्लभ हो जाता है अर्थात् वर्षा प्रारम्भ हो जाती है। वर्षा की मात्रा कम या अधिक होना जलकणों के आकार व मात्रा पर भी निर्भर करता है।वर्षा योग्य जल बिन्दुओं का आकार 2/10 मिमी से अधिक व्यास का होना आवश्यक है। जल बिन्दुओं का आकार बड़ा होने के लिए आवश्यक है कि गर्म हवाएं अधिक ऊंचाई पर जाकर ठण्डी हों तथा तापमान जल बिन्दुओं तक या नीचे आकर काफी समय तक स्थिर रहे। इसके अलावा बादलों में भारी उथल-पुथल तथा विद्युत् आवेग के प्रारम्भ होने से भी जल बिन्दुओं का आकार बढ़ जाता है।             ...

संघनन. CONDENSATION

 संघनन (CONDENSATION) जलवाष्प के जल में बदलने की प्रक्रिया को संघनन या द्रवण कहते हैं। वह तापमान जिस पर जलवाष्प का संघनन प्रारम्भ हो जाता है ओसांक या ओसबिन्दु (Dewpoint) कहलाता है। यदि वायु का तापमान ओस बिन्दु से भी नीचे गिर जाए तो उसकी अतिरिक्त जलवाष्प जलकणों में बदल जाती है। आधुनिक मत के अनुसार संघनन की क्रिया स्वच्छ वायु में कठिनाई से ही हो पाती है। यह क्रिया वायुमण्डल में उपस्थित सूक्ष्म आर्द्रताग्राही नाभिकों (जैसे नमक या शोरे के सूक्ष्म कण, सल्फर डाइ-ऑक्साइड युक्त धुआं, अति सूक्ष्म धूल कण आदि) के चारों ओर आसानी से होती है। नमक सबसे प्रमुख आर्द्रताग्राही नाभिक है। यह समुद्र तटों पर सर्वाधिक मात्रा में मिलता है, अतः संघनन के विभिन्न रूप इन प्रदेशों में सर्वाधिक मिलते हैं। संघनन की प्रारम्भिक अवस्था में आर्द्रताग्राही नाभिकों का आकार महत्वपूर्ण होता है, किन्तु जल बिन्दु बन जाने के बाद उनके आकार की वृद्धि निकटवर्ती वायु की आर्द्रता से नियन्त्रित होती है। संघनन के रूप (Forms of Condensation)—जलवाष्प का संघनन होने पर अनेक रूप पाए जाते हैं, जिनमें ओस, पाला, कोहरा, धुन्ध, बादल आदि प्...